पिछले साल भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने खोजा था कि कोरोनवायरस को एड्स जैसे सम्मिलन के साथ बनाया गया था. ग्रेटगेमइंडिया द्वारा इस अध्ययन के परिणामों को प्रकाशित करने के बाद, इसकी इस हद तक आलोचना की गई कि लेखकों को अपने पेपर को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब, डॉ. फौसी के ईमेल से पता चलता है कि यह डॉ. एंथोनी फौसी खुद थे जिन्होंने भारतीय वैज्ञानिकों को धमकाया था, और उन्हें COVID-19 को AIDS वायरस से जोड़ने वाले अपने अध्ययन को वापस लेने के लिए मजबूर किया था।
"Last year a group of Indian scientists discovered that coronavirus was engineered with AIDS like insertions. Now, Fauci Emails reveal that it was Dr Anthony Fauci himself who threatened the Indian scientists and forced them to withdraw their study"!https://t.co/4fF7T6zotr
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) June 7, 2021
पिछले साल, भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने खोज की थी कि कोरोनावायरस को एड्स जैसे सम्मिलन के साथ बनाया गया था. अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि एक वायरस के लिए इतने कम समय में स्वाभाविक रूप से इस तरह के अनोखे सम्मिलन प्राप्त करने की संभावना नहीं थी।
ग्रेटगेमइंडिया के पाठको को याद होगा कि कैसे हमारे द्वारा अध्ययन के परिणामों को प्रकाशित करने के बाद, हमें सोशल मीडिया विशेषज्ञों की भारी आलोचना का सामना करना पड़ा था| जिसके दबाव में लेखकों को भी अपने पेपर को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था ।
Dear @GreatGameIndia
— Aube Digitale (@AubeDigitale) April 17, 2020
It appears that one of your study concerning HIV insertions inside coronavirus made it to a Nobel prize winner, Luc Montagnier https://t.co/82BMeFiAhq
He discovered HIV was nominated for a Nobel prize in 2008/2009. He was inspired by an Indian group.
बाद में, नोबेल पुरस्कार विजेता ल्यूक मॉन्टैग्नियर ने खुद इस अध्ययन के निष्कर्ष की पुष्टि की थी ।
इसी संदर्भ में चीन की बैटवुमन शी झेंगली ने कहा था, “मैं उन लोगों को सलाह देती हूं जो भारतीय शोधकर्ताओं के शोध पर विश्वास करते हैं कि कृपया वो अपने मुंह को बंद कर लें “।
https://twitter.com/Goldskuul/status/1251112164527673344?s=19
वायरस की मानव निर्मित उत्पत्ति के बारे में चिंताएं और अध्ययन के निष्कर्षों के निहितार्थ को डॉ एंथनी फौसी के साथ भी उठाया गया था, लेकिन उन्होंने चुप रहना और इसे अनदेखा करना ही चुना।
अब फौसी के ईमेल से पता चलता है कि जब उनसे भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा इस शोध पत्र के बारे में पूछा गया था, तो उन्होंने इसे “वास्तव में अजीब” कहकर खारिज कर दिया था। कई अन्य ईमेल से यह भी पता चला है कि डॉ फौसी को चेतावनी दी गई थी कि भले ही COVID-19 को ‘बनाया’ गया होगा, लेकिन उन्हें इसपर चुप ही रहना होगा।
एक प्रमुख संक्रामक रोग विशेषज्ञ, क्रिस्टियन एंडरसन ने डॉ फौसी को भारतीय अध्ययन का हवाला देते हुए ईमेल किया कि वायरस की कुछ विशेषताएं इंजीनियर दिखती हैं। लेकिन उन्होंने सार्वजनिक तौर पर इसकी घोषणा नहीं की। इससे पता चलता है कि डॉ फौसी को पहले से ही वायरस की मानव निर्मित प्रकृति के बारे में पता था, लेकिन उन्होंने इसके बारे में जनता को सूचित नहीं किया।
इसके अलावा, मनीपाल विश्वविद्यालय में भू-राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग के निदेशक प्रोफेसर माधव नलपत ने भारतीय टेलीविजन पर दावा किया कि डॉ. फौसी ने प्रतिष्ठा को धूमिल करने और वैज्ञानिकों के करियर को नष्ट करने की धमकी दी थी।
प्रो. नालपत ने कहा “जो और भी घृणित है वह कवर-अप है। कोई भी वैज्ञानिक जो बोलता था उसे सख्त चेतावनी दी जाती थी कि अगर वह डॉ. फौसी के खिलाफ बोलता है तो उसका करियर बर्बाद हो जाएगा, ”।
https://www.youtube.com/watch?v=CVzrdFa3aYU
इस तथ्य के एक स्तंभकार ‘जोश रोगिन’ ने भी ‘वाशिंगटन पोस्ट पर खुलासा ‘ किया था कि वैज्ञानिक डॉ. एंथनी फौसी शोध से जुड़े मुद्दों पर बात नहीं करते हैं। रोगिन भी दावा करते है फौसी गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च के ‘गॉडफादर’ हैं यह वुहान प्रयोगशाला में हो रहा था जिसे तब कोरोनोवायरस प्रकोप की साइट के रूप में नामित किया गया था।
‘जोश रोजिन’ मेगिन केली के पॉडकास्ट में दिखाई दिए, जहां उन्होंने कहा – ‘मैं अक्सर उन वैज्ञानिकों से बात करता हूं जो एक ही बात कहते हैं, ‘सुनो, हम वास्तव में इस बारे में बोलना चाहते हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते।
‘हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? खैर, हम अपनी सारी फंडिंग एनआईएच, या एनआईएआईडी से प्राप्त करते हैं, जो डॉ.फौसी द्वारा संचालित है। इसलिए हम कुछ भी नहीं कह सकते हैं ‘ओह, गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च खतरनाक हो सकता है, या यह एक लैब से आया होगा, पर हम इसपर खुलकर नहीं बोल सकते क्योंकि यदि हमने इसपर बोला तो समझ लो हम अपना करियर खोने जा रहे हैं, हम अपनी फंडिंग खोने जा रहे हैं, हम ‘अपने काम से हाथ धोने जा रहे हैं।’
"People don't want to think about the fact that our hero of the pandemic Dr. Fauci might also have been connected to this research which might also have been connected to the outbreak…"@JoshRogin on what we know so far. Listen, and download here: https://t.co/F96HgIpiAu pic.twitter.com/6EN4KuoWkY
— The Megyn Kelly Show (@MegynKellyShow) April 14, 2021
अध्ययन के शोधकर्ताओं में से एक, आशुतोष कुमार पांडे ने पहले कहा था कि वे अपने निष्कर्ष पर कायम हैं कि SARS-CoV-2 प्राकृतिक नहीं है। “हमने जनवरी 2020 में यह कहा था, हम इसे फिर से कह रहे हैं”, यह सब उन्होंने ट्वीट किया था।
https://t.co/QxJGnRquuB
— Ashutosh Kumar Pandey (@asrayagiriraj) May 29, 2021
If published this will be tight slap on the cartel of Virologists who are hell bent to make this virus natural. SARS-CoV-2 is not natural. We said this in Jan 2020, we are saying it again.
उन्होंने डॉ. फौसी का जिक्र करते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि पेपर उन लोगों के लिए अजीब था जो वायरस के लिए ‘प्राकृतिक उत्पत्ति’ सिद्धांत को साबित करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि उनके अध्ययन ने जीनोम के उन वर्गों की सही पहचान की थी जो इस वायरस को अपनी विशेषता दे रहे हैं।
यह पूछे जाने पर कि उन्होंने कागज क्यों वापस ले लिया, उन्होंने कहा कि निहित स्वार्थ वाले लोगों के दबाव के कारण इसे वापस ले लिया गया था।
पांडे ने यह भी कहा कि यह पेपर उनके द्वारा किए गए विभिन्न अध्ययनों का सिर्फ एक खंड था और वे पूरे निष्कर्षों को आगे के संस्करण में शामिल करना चाहते थे। लेकिन संशोधित पांडुलिपियों को प्रकाशकों ने कड़ी रोक लगाई थी।
उन्होंने कहा कि संशोधित पांडुलिपि में उन्होंने इस बात की जानकारी दी है कि वायरस का संक्रमण स्पर्शोन्मुख क्यों रहता है और यह मनुष्य को इतनी आसानी से क्यों संक्रमित करता है। लेकिन इसे कभी बाहर नहीं आने दिया गया,।
It matters whether you are the part of the collegium that controls the narrative in science or not. If someone isn't then it's insignificant.
— Ashutosh Kumar Pandey (@asrayagiriraj) June 4, 2021
एक विशेष एजेंडे के पक्ष में एक वैज्ञानिक पेपर को कैसे अवरुद्ध किया जा रहा है, इस पर टिप्पणी करते हुए, उन्होंने कहा, “विज्ञान नया मध्ययुगीन चर्च है, जो इसके पोप हैं वह इसे अपनी इच्छा पर सेंसर करते हैं”।
इस बीच, डॉ फौसी ने खुद अमेरिकी सरकार द्वारा इकोहेल्थ एलायंस के अध्यक्ष पीटर डासज़क के माध्यम से वुहान लैब में गेन-ऑफ-फंक्शन प्रयोगों को वित्त पोषित किया था।
दिलचस्प बात यह है कि पीटर डासज़क वही आदमी है जिसने लैंसेट में एक ‘वैज्ञानिक’ पेपर के प्रकाशन की योजना बनाई थी, जिसमें दावा किया गया था कि वायरस में स्वाभाविक रूप से cross- sepecies character (एक प्थारजाति से दूसरी प्रजाति में जाने का लक्षण) था ।
क्रॉस-प्रजाति के वायरस के लिए प्रयोगों को वित्त पोषित करने वाला वही व्यक्ति कैसे दावा कर सकता है कि यह स्वाभाविक रूप से विकसित हुआ है? अगर आपको लगता है कि यह बात अपमानजनक, तो बस प्रतीक्षा करें।
President of EcoHealth Alliance, Peter Daszak
पीटर डासज़क भी वही आदमी है जिसे डब्ल्यूएचओ ने चीन में इस दावे की जांच के लिए भेजा था कि क्या वायरस स्वाभाविक रूप से विकसित हुआ था या कोरोनावायरस इंजीनियर्ड था
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