मार्च 26, 2020
पिछले साल एक रहस्यमय शिपमेंट को कनाडा से कोरोनावायरस की तस्करी करते पकड़ा गया था। जिसमे कनाडाई लैब में काम करने वाले कुछ चीनी एजेंटों के हाथ होनेका पता लगा था| ग्रेटगेमइंडिया की बाद की जांच में पाया गया कि यह चीनी जैविक युद्ध कार्यक्रम का हिस्सा है| जहां से वुहान कोरोनावायरस के फैलने का संदेह है।
इस जांच के निष्कर्षों को जैविक हथियार विशेषज्ञ डॉ फ्रांसिस बॉयल सहित कई अधिकारियों द्वारा पुष्टि की गई है। डॉ बॉयल ने जैविक हथियार कन्वेंशन अधिनियम का मसौदा तैयार किया, जिसका पालन कई राष्ट्र कर रहे हैं। इस रिपोर्ट ने एक बड़े अंतरराष्ट्रीय विवाद को जन्म दिया है और मुख्यधारा के मीडिया के एक वर्ग द्वारा सक्रिय रूप से जिसे दबाया जा रहा है।
Contents
- 1 सऊदी SARS का नमूना
- 2 कनाडा की प्रयोगशाला
- 3 चीनी जैविक जासूसी
- 4 जियांग्गू किउ – चीनी जैव-युद्ध एजेंट
- 5 कनाडाई लैब में घुसपैठ
- 6 वुहान कोरोना वायरस
- 7 कोरोना वायरस – एक जैविक हथियार
- 8 चीन का जैविक युद्ध कार्यक्रम
- 9 जैविक हथियार तकनीक
सऊदी SARS का नमूना
13 जून, 2012 को सऊदी अरब के जेद्दा में एक 60 वर्षीय व्यक्ति को बुखार, खांसी, कफ और सांस लेने में तकलीफ की वजह से एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसे पहले सेह्रदय तथा फेफड़ो सम्बंधित या गुर्दे की कोई बीमारी नहीं थी, और न ही वह धूम्रपान करता था और न ही किसी प्रकार की दवाइयां या उसका कोई इलाज चल रहा था|
मिस्र के वाइरसविज्ञानी डॉ अली मोहम्मद जकी ने उसके फेफड़ोंमें एक अज्ञात कोरोनावायरस होने की पुष्टि की और उसे फेफड़ो से अलग कर दिया। रूटीन डायग्नोस्टिक्स के बाद भी वह इसका कारण ना जान सके, तब जकी ने सलाह के लिए नीदरलैंड के रॉटरडैम में इरास्मस मेडिकल सेंटर (EMC) के एक प्रमुख विषाणुविज्ञानी रॉन फुचियर से संपर्क किया।
फुचियर ने जकी द्वारा भेजे गए एक नमूने से वायरस की जांच की। जाँच के लिए फुचियर ने एक व्यापक-स्पेक्ट्रम “पैन-कोरोनावायरस” का उपयोग किया, तथा मानवों को संक्रमित करने के लिए जाने जाने वाले कई कोरोना वायरस की विशिष्ट विशेषताओं के परीक्षण करने के लिए वास्तविक समय पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) विधि का उपयोग किया।
कोरोनवायरस का यह नमूना वैज्ञानिक निदेशक डॉ फ्रैंक प्लमर (एक कोरोनावायरस विशेषज्ञ जिनकी हाल ही में अफ्रीका में हत्या कर दी गई) ने कनाडा के नेशनल माइक्रोबायोलॉजी लेबोरेटरी (एन.एम.एल.) के विनीपेग में सीधे फुचियर से प्राप्त किया, वही फुचियर जिन्होंने इस वायरस को जकी से प्राप्त किया था। बाद में इस वायरस को कथित तौर पर चीनी एजेंटों द्वारा कनाडाई लैब से चुराया गया था|
कनाडा की प्रयोगशाला
4 मई, 2013 को डच लैब से कोरोनवायरस कनाडा की एन.एम.एल. विनीपेग में पहुंचा। कनाडाई लैब में इसका उपयोग कनाडा में होने वाले निदानकारी परीक्षणों का आकलन करने के लिए किया गया। विनीपेग के वैज्ञानिकों ने यह देखने के लिए कई प्रशिक्षण किये कि किस पशु की प्रजाति इस नए वायरस से संक्रमित हो सकती है।
यह प्रयोग कनाडाई खाद्य निरीक्षण एजेंसी की राष्ट्रीय प्रयोगशाला तथा नेशनल सेंटर फॉर फॉरेन एनिमल डिजीजके साथ मिलकर किया गया था, जो कि राष्ट्रीय माइक्रोबायोलॉजी प्रयोगशाला के साथ एक ही परिसर में स्थित है|
N.M.L. का कोरोना वायरस के लिए व्यापक परीक्षण सेवाओं की पेशकश का एक लंबा इतिहास रहा है। इसने SARS कोरोना वायरस का पहला जीनोम अनुक्रम प्रदान किया और 2004 में एक और कोरोनोवायरस NL-63 की पहचान की थी|
इस विनीपेग आधारित कनाडाई लैब को चीनी एजेंटों द्वारा टारगेट किया गया था जिसे जैविक जासूसी भी कहा जा सकता है|
चीनी जैविक जासूसी
मार्च 2019 में, एक रहस्यमयी घटना में कनाडा के N.M.L. के असाधारण विषाणुजनित विषाणुओं को चीन लाया गया। इस घटना ने बायो-वारफेयर विशेषज्ञों से एक बड़ा सवाल खड़ा किया कि यह घातक वायरस कनाडा से चीन क्यों भेजा गया? N.M.L. के वैज्ञानिकों ने कहा कि यह एक अत्यधिक घातक वायरस एक संभावित जैव-हथियार है|
जांच के बाद यह पता चला कि, इस घटना को N.M.L. में काम करने वाले कुछ चीनीं जासूसों द्वारा अंजाम दिया गया था। चार महीने बाद जुलाई 2019 में, चीनी विषाणु वैज्ञानिकों के एक समूह को कनाडा के नेशनल माइक्रोबायोलॉजी लैबोरेटरी (एन.एम.एल.) से जबरन निकाला गया। N.M.L. कनाडा की एकमात्र लेवल-4 की सुविधा है और उत्तरी अमेरिका में केवल कुछ चुनिन्दा में से एक है जो दुनिया की सबसे घातक बीमारियों से निपटने का दमखम रखती है, जिसमें इबोला, SARS, कोरोना वायरस जैसे आदि घातक वायरस शामिल हैं।
जियांग्गू किउ – चीनी जैव-युद्ध एजेंट
एक N.M.L. वैज्ञानिक, जो अपने पति (वह भी एक जीवविज्ञानी है) और अपनी शोध टीम के सदस्यों के साथ कनाडाई लैब से बाहर निकाले गए थे, माना जाता है कि जियांग्गू किउ एक चीनी बायो-वारफेयर एजेंट है। किउ कनाडा के NML में विशेष रोगजन कार्यक्रम में वैक्सीन विकास और एंटीवायरल थैरेपी अनुभाग की प्रमुख थी।
ज़ियानगू किउ तियानजिन में पैदा हुई एक उत्कृष्ट चीनी वैज्ञानिक हैं। उन्होंने मुख्य रूप से 1985 में चीन के हेबै मेडिकल विश्वविद्यालय से चिकित्सा के क्षेत्र में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की और 1996 में स्नातक की पढ़ाई के लिए कनाडा आईं। बाद में, वह सेल बायोलॉजी के संस्थान और मैनिटोबा विश्वविद्यालय के बाल रोग और बाल स्वास्थ्य विभाग में भी कार्यरत थी|
लेकिन यह उनकी जिंदगी का सिर्फ एक हिस्सा है, इसके आलावा 2006 से वह कनाडा के N.M.L. में शक्तिशाली विषाणुओं पर अध्ययन कर रही थी। इनके ही द्वारा कोरोना वायरस जैसा खतरनाक वायरस 2014 में N.M.L. से चीन भेजा गया, (साथ में वायरस माचुपो, जूनिन, रिफ्ट वैली फीवर, क्रीमियन-कांगो हेमोरेजिक फीवर और हेंड्रा नामक वायरस भी थे|
कनाडाई लैब में घुसपैठ
डॉ ज़ियानगू किउ का विवाह एक अन्य चीनी वैज्ञानिक – डॉ केशिंग चेंग के साथ हुआ था, जोकि विशेष रूप से NML के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मूल के साथ जुड़े हुए थे| डॉ चेंग मुख्य रूप से एक जीवाणुविज्ञानी थे, जो कि बाद में विषाणुविज्ञानी में तब्दील हो गए| यह दंपत्ति कई चीनी विद्यार्थी एजेंटों के साथ कनाडा के एन.एम.एल. में घुसपैठ करने के लिए जिम्मेदार है, और इन्हें चीन के जैविक युद्ध कार्यक्रम का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा बताया गया है यह सभी विद्यार्थी निम्न चीनी वैज्ञानिक संस्थाओंसे जुड़े थे:
- Institute of Military Veterinary, Academy of Military Medical Sciences, Changchun
- Center for Disease Control and Prevention, Chengdu Military Region
- Wuhan Institute of Virology, Chinese Academy of Sciences, Hubei
- Institute of Microbiology, Chinese Academy of Sciences, Beijing
उपरोक्त चारो चीनी बायोलॉजिकल वारफेयर संस्थाओं नें इबोला वायरस के अध्ययन में डॉ किउ का सहयोग किया था| इंस्टीट्यूट ऑफ मिलिट्री वेटरनरी ने रिफ्ट वैली बुखार वायरस पर एक अध्ययन किया, जबकि माइक्रोबायोलॉजी संस्थान ने मारबर्ग वायरस पर एक अध्ययन किया। विशेष रूप से, चीनी सैन्य अकादमी विज्ञान द्वारा – ‘फेविपिरविर’ का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया, जोकि JK-05 के साथ (मूल रूप से 2006 में पहले से ही चीन में पंजीकृत एक जापानी पेटेंट), इबोला और अन्य विषाणुओं से बिलकुल भिन्न थे।
हालांकि, कोरोनोवायरस, इबोला, निपाह, मारबर्ग या रिफ्ट वैली बुखार के वायरस के मामले में डॉ किउ द्वारा किया गया अध्ययन काफी अधिक उन्नत, उत्कृष्ट और स्पष्ट रूप से चीनी जैविक हथियारों के विकास के लिए महत्वपूर्ण था। कनाडाई जांच जारी है और सवाल अभी भी यही है कि 2006 से 2018 के बीच वायरस और उससे जुडी अन्य महत्वपूर्ण चीजे चीन तक कैसे पहुंची? यह सभी एक ही साथ पहुंचाई गयी या फिर इन्हें एक-एक करके चीन लाया गया?
डॉ किउ ने 2018 में आर्मी मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंफेक्शियस डिसीज, के तीन वैज्ञानिकों के साथ मिलकर, दो इबोला वायरस और बंदरों में पाए जाने वाले मारबर्ग वायरस का अध्ययन किया| डॉ किउ के इस अध्ययन को यूएस डिफेंस थ्रेट रिडक्शन एजेंसी (US Defense Threat Reduction Agency) का सहयोग प्राप्त था|
वुहान कोरोना वायरस
डॉ किउ ने चीनी अकादमी ऑफ साइंसेज के वुहान नेशनल बायोसेफ्टी लैबोरेटरी स्कूल की गतवर्ष 2017-18 के बीच कम से कम पांच यात्राएं की, जिसे जनवरी 2017 में BSL-4 के लिए प्रमाणित किया गया था। इसके अलावा, अगस्त 2017 में, राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग चीन की वुहान सुविधा में इबोला, निपाह और क्रीमियन-कांगो रक्तस्रावी बुखार वायरस से जुड़े अनुसंधान गतिविधियों को मंजूरी दी गयी थी|
संयोगवश, वुहान राष्ट्रीय जैव सुरक्षा प्रयोगशाला, हुआनी सीफूड मार्केट से केवल 20 मील की दूरी पर स्थित है, जो कि इस कोरोनावायरस के प्रकोप का मुख्य कारण है|
वुहान राष्ट्रीय जैव सुरक्षा प्रयोगशाला को चीनी सैन्य सुविधा वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में चीन के जैविक विज्ञान कार्यक्रम से जोड़ा गया था। यह देश में पहली प्रयोगशाला थी जिसे बायोसेफ्टी-लेवल-4 (BSL-4) मानकों के अनुरूप बनाया गया – ‘उच्चतम बायोहाजार्ड स्तर’, जिसका अर्थ है कि यह सबसे खतरनाक रोगजनकों को संभालने के लिए योग्य होगा।
‘बायोसेफ्टी एंड हेल्थ’ नामक एक लेख में ‘गुइज़ेन वू’ ने लिखा कि जनवरी 2018 में BSL-4 रोगजनकों पर वैश्विक प्रयोगों के लिए प्रयोगशाला का संचालन किया गया था| 2004 में SARS की एक प्रयोगशाला रिसाव घटना के बाद, चीन के पूर्व स्वास्थ्य मंत्रालय ने SARS, कोरोनावायरस और महामारी इन्फ्लूएंजा वायरस जैसे उच्च-स्तरीय रोगजनकों के लिए संरक्षण प्रयोगशालाओं का निर्माण शुरू किया गया|
कोरोना वायरस – एक जैविक हथियार
वुहान संस्थान केंद्र द्वारा पूर्व में कोरोना वायरस का अध्ययन किया गया था जिसमें सीरियस एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम या SARS, H5N1 इन्फ्लूएंजा वायरस, जापानी एन्सेफलाइटिस और डेंगू शामिल थे। संस्थान के शोधकर्ताओं ने उस रोगाणु का भी अध्ययन किया जो एंथ्रेक्स का कारण बनता है|
“पूर्व इजराइली सैन्य अधिकारी (इंटेलिजेंस) डेनी शोहम” ने कहा, कोरोनावायरस (विशेष रूप से SARS) का अध्ययन इसी संस्थान में किया गया था और संभवत: इसे यही आयोजित भी किया गया| आपको बता दें कि डेनी शोहम ने ही चीनी बायोवारफेयर का अध्ययन किया है। उसने कहा “SARS को बड़े पैमाने पर चीनी बायोवारफेयर कार्यक्रम में शामिल किया गया, और कई प्रासंगिक सुविधाओं से सुसज्जित किया गया है”।
जेम्स गिओर्डानो, जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर हैं और यूएस स्पेशल ऑपरेशंस कमांड में बायोवारफेयर में वरिष्ठ शोधकर्ता हैं| उन्होंने कहा, कि जीन-संपादन और अन्य अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के आसपास जैव-विज्ञान, शिथिल नैतिकता और सरकार और शिक्षाविदों के एकीकरण में चीन का बढ़ता निवेश इस बात की पुष्टि करता है कि चीन बहुत बड़े हथियार बनाने की फ़िराक में लगा हुआ है|
इसका मतलब एक आक्रामक एजेंट, या एक संशोधित रोगाणु हो सकता है, जिसका इलाज केवल चीन में ही संभव है या इसकी वैक्सीन केवल चीन के पास ही उपलब्ध होगी, “यह कोई युद्ध नहीं है,” लेकिन जो ऐसा कर पायेगा वह वैश्विक उद्धारकर्ता के रूप में कार्य करने की क्षमता का लाभ उठा पायेगा, और तभी वह मैक्रो और सूक्ष्म आर्थिक और जैव-शक्ति निर्भरता के विभिन्न स्तरों का निर्माण कर पायेगा।
चीन का जैविक युद्ध कार्यक्रम
2015 के एक शैक्षिक पत्र में, शोहम – (Bar-Ilan’s Begin-Sadat Center for Strategic Studies) ने दावा किया था कि 40 से अधिक चीनी संस्था जैव हथियार उत्पादन में लगी हुई है|
शोहम ने दावा किया था कि चीन के एकेडमी ऑफ मिलिट्री मेडिकल साइंसेज ने एक इबोला दवा विकसित की है – जिसे JK-05 कहा जाता है| इसके बारे में और बताते हुए शोहम ने कहा कि यह एबोला कोशिकाएं चीन के बायो वारफेयर प्रोग्राम का अहम् हिस्सा हैं|
इबोला को यू.एस. सेंटर्स फॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) द्वारा “श्रेणी ए” बायोटेररिज़्म एजेंट के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है कि यह आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को प्रेषित किया जा सकता है| जिससे अधित घबराहट होगी और काफी सारी मौत भी होंगी| CDC की सूची के अनुसार निपाह वायरस श्रेणी C पदार्थ है यह एक घातक उभरती हुई रोगज़नक़ बीमारी का कारण बन सकता है और तेजी से फ़ैल भी सकता है|
चीन के जैविक युद्ध कार्यक्रम को एक उन्नत चरण में माना जाता है जिसमें अनुसंधान और विकास, उत्पादन और हथियारकरण क्षमताएं शामिल हैं। माना जाता है कि इसकी वर्तमान सूची में पारंपरिक रासायनिक और जैविक एजेंटों की पूरी श्रृंखला को शामिल किया गया है, जिसमें विभिन्न प्रकार के डिलीवरी सिस्टम शामिल हैं जिनमें तोपखाने रॉकेट, हवाई बम, स्प्रेयर और कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल शामिल हैं।
जैविक हथियार तकनीक
सैन्य-नागरिक संलयन की चीन की राष्ट्रीय रणनीति ने जीव विज्ञान को प्राथमिकता के रूप में उजागर किया है, और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी इस ज्ञान का विस्तार और शोषण करने में सबसे आगे हो सकती है।
PLA जीव विज्ञान के लिए सैन्य अनुप्रयोगों का अध्ययन कर रहा है और मस्तिष्क विज्ञान, सुपरकंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित अन्य विषयों के साथ इसे किस तरह जोड़ा जाए इसके उपाए खोज रहा है| 2016 से, केंद्रीय सैन्य आयोग ने सैन्य मस्तिष्क विज्ञान, उन्नत बायोमिमेटिक सिस्टम, जैविक और बायोमिमेटिक सामग्री, मानव प्रदर्शन बढ़ाने और “नई अवधारणा” जैव प्रौद्योगिकी पर परियोजनाओं के लिए बहुतेरे फण्ड दिए गए हैं।
2016 में, AMMS के एक डॉक्टरेट शोधकर्ता ने एक शोध पत्र प्रकाशित किया, “मानव प्रदर्शन संवर्धन प्रौद्योगिकी के मूल्यांकन पर शोध”, जिसमें CRISPR-CAS को तीन प्राथमिक तकनीकों में से एक के रूप में दिखाया गया है| जो सैनिकों की युद्ध प्रभावशीलता को बढ़ा सकती है। सहायक अनुसंधान ने दवा Modafinil की प्रभावशीलता को देखा, जिसमें संज्ञानात्मक वृधि में अनुप्रयोग हैं; और transcranial चुंबकीय उत्तेजना, जो कि मस्तिष्क उत्तेजना का एक प्रकार है, जबकि यह भी कहा कि एक “सैन्य निरोध प्रौद्योगिकी के रूप में CRISPR- CAS की महान क्षमता” और इसे चीन को बायोवारफेयर के बढ़ते हुए विकास के रूप में देखना चाहिए|
2016 में, आनुवंशिक जानकारी के संभावित रणनीतिक मूल्य ने चीनी सरकार को नेशनल जीनबैंक लॉन्च करने का नेतृत्व किया, जो इस तरह के डेटा का दुनिया का सबसे बड़ा भंडार बनने का इरादा रखता है। इसका उद्देश्य जैव प्रौद्योगिकी युद्ध के क्षेत्र में “चीन के मूल्यवान आनुवंशिक संसाधनों का विकास और उपयोग करना है| जैव सूचना विज्ञान में राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करना और रणनीतिक कमांडिंग ऊंचाइयों को हासिल करने की चीन की क्षमता को बढ़ाना है।
युद्ध के उभरते डोमेन के रूप में जीव विज्ञान में चीनी सेना की रुचि रणनीतिकारों द्वारा निर्देशित की जाती है जो संभावित “आनुवंशिक हथियारों” और “रक्तहीन जीत” की संभावना के बारे में बात करते हैं।
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