एक शीर्ष भारतीय वायरोलॉजिस्ट ने सनसनीखेज दावा किया है कि आधिकारिक तौर पर महामारी शुरू होने से पहले ही चीन COVID-19 वैक्सीन के साथ तैयार था।
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एक प्रख्यात भारतीय वायरोलॉजिस्ट ने चीन द्वारा वायरस के प्रकोप के मामले में पहले से तैयार होने का खुलासा किया है| उनका कहना है कि चीन नें महामारी से पहले ही वैक्सीन बना ली थी| उनका यह दावा इस बात की तरफ इशारा करता है कि यह घातक वायरस प्रयोगशाला में विकसित किया गया था।
इससे चीन को शुरुआती दिनों से ही प्रसार को कम करने में मदद मिल सकती थी। उन्होंने कहा कि दुनिया में 140 करोड़ की सबसे बड़ी आबादी वाले चीन ने दिसंबर 2019 से सिर्फ 91,300 कोविड-पॉजिटिव मामले और 4,636 मौतें दर्ज की हैं। दर्ज मामलों के क्रम में यह सभी देशों की सूची में 98 वें स्थान पर है।
इंडियन एक्सप्रेस के द्वारा रिपोर्ट किया गया कि वायरोलॉजिस्ट, डॉ. टी जैकब जॉन जो कि वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर और क्लिनिकल वायरोलॉजी विभाग के प्रमुख भी है, ने बताया
चीनी प्रकरण (वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से संदिग्ध रिसाव) के बारे में कुछ रहस्य हैं। चीन की कोविड-19 महामारी दुनिया में अनोखी थी। यानि कि वो कुछ छुपा रहे हैं…या वो अलग हैं…या चीन ने इसके लिए पहले से तैयारी कर ली थी. सब कुछ वैसा नहीं है जैसा कि दिखाई दे रहा है। ”
उन्होंने “24 फरवरी, 2020 तक”, महामारी फैलने के ठीक दो महीने बाद एक युवा चीनी वैज्ञानिक द्वारा SARS-CoV-2 वैक्सीन के लिए लाइसेंस के लिए आवेदन करने का उदाहरण दिया|
डॉ जॉन ने कहा कि“सिर्फ दो महीनों में एक वैक्सीन पर काम करना बहुत जल्दबाजी है। उन्होंने कम सेे कम साल पहले शुरू किया होगा|
“ और अब वह युवक (वैज्ञानिक) मर चुका है। बहुत सारे पहलू हैं जिस पर बात होनी चाहिए। ऐसा लगता है कि चीन कुछ छुपा रहा है, जैसे कोई अपराधी छुपाता है।”
डॉ टी जैकब जॉन ने कहा, “आणविक जीवविज्ञान में स्मोकिंग गन एविडेंस है जो इस बात की तरफ इशारा करता है कि यह एक प्रयोगशाला में बनाया गया मानव निर्मित वायरस है।”
हमने अपने शोध के दौरान एक लंबा संकलन किया है जिसमें कोरोनोवायरस अनुसंधान में लगे लोगों की हत्या की सूची या सिर्फ रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाए जाने वाले लोगों का डेटा तैयार किया है।
दिलचस्प बात यह है कि, जैसा ग्रेटगेमइंडिया द्वारा रिपोर्ट किया गया है कुसुमा स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के भारतीय जीवविज्ञानियों ने पता लगाया था कि SARS-CoV-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन में 4 एड्स वायरस जीन के सम्मिलन हैं| और यही वह कारण है जिससे वायरस मानव कोशिकाओं से जुड़ने और शरीर में प्रवेश करने में सफल हुआ है।
“पिछले साल भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने पाया कि कोरोनावायरस को एड्स के अवशेषणों के साथ मिलाकर बनाया गया था। अब, फौसी ईमेल से पता चलता है कि यह खुद डॉ एंथनी फौसी थे जिन्होंने भारतीय वैज्ञानिकों को धमकी दी थी और उन्हें अपना अध्ययन वापस लेने के लिए मजबूर किया था”!https://t.co/4fF7T6zotr
– प्रशांत भूषण (@pbhushan1) 7 जून, 2021
ग्रेटगेमइंडिया अध्ययन के परिणामों को प्रकाशित करने के बाद, इसकी इस हद तक भारी आलोचना की गई कि लेखकों को अपने पेपर को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब, फौसी के ईमेल से पता चलता है कि यह डॉ एंथोनी फौसी खुद थे जिन्होंने भारतीय वैज्ञानिकों को धमकी दी थी और उन्हें COVID-19 को AIDS वायरस से जोड़ने वाले अपने अध्ययन को वापस लेने के लिए मजबूर किया था।
इस बीच, कोविड -19 महामारी मामले में ब्रिटेन का नेतृत्व करने वाले शीर्ष वैज्ञानिकों में से दो ने डॉ. फौसी के साथ मिलकर COVID-19 जैव-हथियार अनुसंधान की कहानी को जनता से छुपाया था| उन्होंनेे कोरोनावायरस के प्राकृतिक मूल सिद्धांत को आगे बढ़चढ़कर प्रस्तुत किया और इसे ही गेन-ऑफ-फंक्शन प्रयोगों के रूप में भी जाना जाता है।
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