Read this article in English – Seaplane Of Shared Sovereignty
जलविमान में हमारे भारतीय प्रधान मंत्री को उड़ाने वाले ये दो विदेशी पायलट कौन हैं? क्या यह एक सुरक्षा सम्बंधित समस्या नहीं होनी चाहिए? या फिर यह आनेवाले कल का सामान्यीकरण है?
Who are these two foreign pilots flying around Indian PM in the #seaplane? Shouldn’t this be a security issue? Or is it normalization of things to come? Stay tuned for our <thread> on the issue. pic.twitter.com/IofqT8p9vk
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 12, 2017
क्या एक प्रधान मंत्री को भारत सरकार के प्रोटोकॉल के अनुसार एक इंजनवाले विमान में उड़ने की इजाजत है? और वही विमान अगर विदेशी पायलट उड़ाते है तो उसका क्या? क्या भारतीय वायु सेना के पायलट जलविमान नहीं उड़ा सकते? किसी भी प्रोटोकॉल से ज्यादा, पूरे भारतीय सेना को यहां नजरअंदाज किया जा रहा है, इसका क्या अर्थ है?
जिस जलविमान में हमारे प्रधानमंत्री उडे वह सीधे पाकिस्तान से आया था और उसे विदेशी पायलटों ने उड़ाया! और इसकी हमारे भारतीय सुरक्षा बलों ने अनुमति देदी??? यह है हमारे भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान की स्थिति। क्या उन्होंने होमी भाभा की हत्या से कुछ भी नहीं सीखा?
3 So the #seaplane in which our PM was flown in came directly from Pakistan & was flown by foreign pilots! And our Indian security forces allowed that???
This is the sorry state of Indian security establishment. Havent they learned anything from #HomiBhabha assassination? pic.twitter.com/Zc6dDUt9XZ
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 12, 2017
यहाँ मुद्दा जल विमान के बारे में नहीं है| लेकिन संपूर्ण भारतीय सेना का है जिसे पूरी दुनिया के सामने नजरअंदाज और अपमानित किया जा रहा है। इसे बार बार दोहराया और प्रबलित किया जा रहा है। क्या यह नया सामान्य है – अमेरिकी सेना का भारत की भूमि पर संचालन करना और भारतीय सेना को आदेश देना?
यहां जो हो रहा है वह है एक विचार का सामान्यीकरण जिसे समाज के कुछ वर्गों में लोकप्रिय किया जा रहा है – जिसे ‘सहभाजीत संप्रभुता’ के नाम से जाना जाता है| इस बारे में अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी के तहत पहले से ही समझौते पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं| यह आने वाले कल का भविष्य है|
पंजीकरण विवरण बताते हैं कि इस जलविमान का मालिक अमेरिका का बैंक ऑफ यूटा ट्रस्ट्स है। यह बैंक अपने ग्राहकों के लिए शेल कंपनियों के माध्यम से (जिनका हालही में पैराडाइज पेपर्स में नाम आया है) अपने ट्रस्ट के तहत विमानों को पंजीकृत करता है| इसका एक क्लाइंट पुतिन का करीबी एक रूसी कुलीन है – जिसके ऊपर अमरिकी अदालत में काफी गंभीर मामला चल रहा है|
6 Registration details show #SeaPlane owned by Bank of Utah Trusts US. What the Bank does is register planes under its Trust for various of its clients via shell companies popped up in #ParadisePapers. One of its client is Russian oligarch close to Putin. https://t.co/Fs06UXrCSY
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 12, 2017
क्या SPG को प्रधान मंत्री की सुरक्षा को कड़ा नहीं करना चाहिए था जब यह जलविमान पाकिस्तान से सीधे उड़कर आया? जिसका मालिक रहस्यमय तरीके से एक ऐसे बैंक ट्रस्ट से जुड़ा हुआ है जो अनाम ग्राहकों के लिए शैल कंपनियों द्वारा विमानों को दर्ज करने का काम करता है जिनमें से एक रूसी कुलीन है?
क्या यह सुस्त सुरक्षा व्यवस्था है या आधिकारिक प्रोटोकॉल के लिए जानबूझकर उपेक्षा? या इसके पीछे कुछ और है? यह वही प्रतिमान है जो बार-बार निरीक्षण में आ रहा है| हाल ही में यह इवांका ट्रम्प के हैदराबाद दौरे पर देखा गया जहां हमारे मेजबान राष्ट्रीय एजेंसियों को विदेशी एजेंसियों के सामने अपमानित किया गया था।
3500 पुलिसकर्मी, इंटेलीजेंस ब्यूरो, विशेष खुफिया दस्ता, काउंटर-इंटेलीजेंस टीम और विशेष शाखा के सुरक्षा कर्मचारियों को 4 एवं 5 परत में अमेरिकी अधिकारियों के तहत रखा गया। यहां तक की इसके लिए उनको भारत से नहीं बल्कि अमेरिका की सीक्रेट सर्विस से सीधे ऑर्डर लेना पड़ा। क्या एसपीजी को अमेरिकी एजेंसियों पर नियंत्रण लेने की इजाजत होगी, जब हमारे प्रधान मंत्री अमेरिका जाएंगे? क्यों नहीं? यदि मूर्ख नहीं हो तो सोचो।
इवांका की यात्रा ने कई सवाल उठाए| क्या भारतीय सुरक्षा बल हमारे अंतरराष्ट्रीय अतिथियों को सुरक्षा प्रदान करने में असक्षम है? क्या भारत सरकार हमारे अंतरराष्ट्रीय मेहमानों की सुरक्षा के लिए हमारी सेना की क्षमता पर भरोसा नहीं करती? क्या हमारे अपने ही देश में किसी विदेशी सुरक्षा एजेंसी से ओर्डर्स लेना हमारे सभी बलों का अपमान नहीं है?
Ivanka’s visit raised many concerns. Cant Indian Agencies provide security to our vising guests? Dont GoI trust ability of our forces to protect our guests? Isnt taking orders from a foreign security agency in our own country an insult to all our forces? https://t.co/5jePT3XB4b
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 13, 2017
लेकिन अब इस जलविमान की घटना के साथ सुरक्षा के ये प्रश्न पूरी तरह से नया आयाम लेते हैं। यह बताया गया है कि हमारे प्रधान मंत्री को उड़ान भरने वाले विदेशी पायलटों के बारे में सुरक्षा चिंताओं को उठाया गया था जिसे खारिज कर दिया गया। यह क्या दर्शाता है?
But now with this #seaplane incident these questions of security takes a totally new dimension. It has been reported that security concerns were raised regarding foreign pilots flying around our PM which were overruled. What does this signify? https://t.co/BwKFeE11cw
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 13, 2017
जब हमारे अपने विशेष सुरक्षा गार्डों द्वारा उठाए गए प्रधान मंत्री की सुरक्षा संबंधी चिंता का खंडन किया जाता है और हमारे प्रधान मंत्री को सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार कुछ विदेशी पायलटों को दिया जाता है, तो यह पूरे भारतीय सेना और दुनिया को बड़े पैमाने पर क्या संकेत देता है? क्या कोई महाशक्ति ऐसे व्यवहार करता है?
ये यादृच्छिक घटनाएं नहीं हैं| धीरे-धीरे, लेकिन तेजी से और निश्चित रूप से हमारे सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का उल्लंघन हो रहा है| और उल्लंघन भी एक ऐसे भव्य तरीके से सबके सामने और सबको आदि करते हुए – जीवन के एक नए तरीके से, आने वाले कल के एक नए भविष्य के लिए, एक नया सामान्य – जिसे “सहभाजीत संप्रभुता” कहा जाता है|
जब अमेरिका के विदेश मंत्री रेक्स टिल्लरसन ने भारत का दौरा किया उन्होंने दक्षिण एशियाई भारत को पूर्वी एशियाई चीन के खिलाफ एक प्रॉक्सी बल के रूप में इस्तेमाल करने की अमेरिकी योजनाओं को भारत के समक्ष व्यक्त किया| हमने उस दिशा में पहले से ही समझौतों पर हस्ताक्षर किए हुए है|
यह नहीं भुलाया जाना चाहिए कि भारत सरकारने 2016 की गर्मियों में वॉशिंगटन के साथ “लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेन्डम ऑफ एग्रीमेंट” LEMOA पर एक समझौता किया है जिसके स्वरूप में हमने सभी भारतीय सैन्य स्थानों का अस्थायी “लॉजिस्टिक” उपयोग के लिए केस-बाय-केस आधार पर अमेरिका को आत्मसमर्पण किया है। हमने और क्या-क्या समर्पण किया है वह तो कोई भी नहीं जानता है|
और इसमें एकल पत्थर का उपयोग करके कई पक्षियों को मारने और एक को बचाने की अमेरिकी योजना को जोड़ें| इस योजना के अनुसार अमेरिकी चाहते हैं कि भारत ईरानी तेल का उपयोग बंद कर दें और इसे अमेरिकी तेल के साथ बदल दें। स्पष्ट सवाल यह है कि जब अमेरिका खुद ओपेक पर निर्भर करता है, तो भारत इस नए मिलन के लिए अपने पुराने सहयोगी को क्यों धोखा दे?
Add to this the American plan to kill many birds & save one using a single stone – getting India to dump Iranian oil for US oil. Obvious question is when US itself is dependent on OPEC, how & why should India dump its age old ally for this new found one? https://t.co/Zjz8S3LouC
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 13, 2017
निश्चित रूप से हमने नम्रतापूर्वक अमेरिकी योजना का अनुपालन किया| 2 अक्टूबर 2017 को भारत ने ओडिशा के पारादीप पोर्ट पर अमेरिका से अपना पहला 1.6 मिलियन बैरल कच्चे तेल का शिपमेंट प्राप्त किया। और अमेरिकी तेल के लिए ईरान को धोखा देने के बदले हमें क्या मिला? एक ऐसा गन्दा अपशिष्ट उत्पाद ईंधन जिससे अमेरिका को छुटकारा नहीं मिल मिल रहा था|
Sure we did comply with US plan. On Oct 2 2017 India received its first ever 1.6 million barrels crude oil shipment from US at Paradip Port in Odisha. And what did we get for dumping Iran for US oil? A dirty waste product fuel that US can’t get rid off. https://t.co/p5SKnOQJvy
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 13, 2017
हमें एक भ्रामक सपना बेचा गया है| “हम आपको चीनी ड्रैगन का मुकाबला करने में मदद करेंगे” वे कहते हैं। अगर आप पूछें तो असली जुमला यह है। कोई भी इस बात को लेकर चिंतित नहीं था कि भारत-चीन शांति से कैसे जीने में कामयाब रहे और कैसे सापेक्ष शांति में साइलक रूट का हजारों सालों तक संचालन किया। किसी को भी मौजूदा समस्या की जड़ जानने में दिलचस्पी नहीं थी। जो भी अमेरिकियों ने सिखाया हमने तोतो की तरह गाया|
सिर्फ 10 वर्षों में, चीन ने विश्वस्तरीय बहुराष्ट्रीय कंपनियों का निर्माण किया है जो पश्चिमी उत्पादों की सस्ते प्रतिलिपियां बनाने से विकसित होकर अब दुनिया के सबसे बड़े MNCs के साथ प्रतिस्पर्धा करने लगा है| यह उन्होंने राज्य नीतियों, आक्रामक मूल्य निर्धारण, राज्य सब्सिडी, संरक्षणवादी नीतियों और सस्ते वित्त के कारण प्राप्त किया।
In just 10 years, China has built world-class MNCs that have graduated from making cheap copycats of western products to competing with world’s biggest MNCs. This they achieve because of state policies, aggressive pricing, state subsidy, protectionist policies and cheap finance. pic.twitter.com/K55djseSIk
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 13, 2017
भारत 61.3 अरब डॉलर के चीनी उत्पादों का आयात करता है, जबकि चीन में निर्यात 10.2 अरब डॉलर है। इतना ही नहीं, चीन बहुमूल्य उत्पादों जैसे मोबाइल फोन, प्लास्टिक, बिजली के सामान, मशीनरी और भागों का भारत में निर्यात करता है जबकि भारत चीन में मुख्य रूप से कच्चे माल निर्यात करता है।
India imports $61.3B worth of Chinese products while exports just $10.2B to China. Not just that, Chinese exports value-added products like mobile phones, plastics, electrical goods, machinery and parts to India while India exports primarily raw materials to China. pic.twitter.com/uyg1TMdG4N
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 13, 2017
चीनी कंपनियां अपने ही व्यापार बाजार में भारत को हरा रही हैं। चीनी कंपनियां अपने ही व्यापार बाजार में भारत को हरा रही हैं? या वे इसके बारे में क्या करने का प्रस्ताव भी करते हैं? इस समस्या को हल करने के लिए भी अमेरिकी मदद की तलाश करें? क्यों नहीं जब हमारी अधिकांश एजेंसियां पहले से ही उनकी मदद ले रही हैं?
Chinese companies are beating India in its own trade backyard. What has GoI done about it? Or what do they even propose to do about it? Look for American help to sort this out as well? Why not when most of our agencies are already taking their help? https://t.co/oqFWVWAFtU
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 13, 2017
क्या हम समझते हैं कि FDI कैसे काम करता है? क्या हमने इस पर कोई भी अध्ययन किया है कि यह विदेशी धन कैसे पूरे भारतीय समाज का पुनर्गठन और पुन: परिष्कृत करने जा रहा है? लो, यह नमूना पढ़ो। और हाँ यह चीनी विश्वविद्यालय द्वारा शोध किया गया है|
Do we understand how FDI works? Have we even done any impact study on how all this foreign money is going to restructure and re-calibrate the entire fabric of Indian society? Here is a taste of what it looks like & yes it is conducted by Chinese University https://t.co/HgAQfG6eFo pic.twitter.com/C7asdJEZuf
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 13, 2017
अगर हमने ऐसा अध्ययन किया होता, तो हम वैश्विक वित्तीय धोखाधड़ी से निपटने के लिए पहले से ही हमारी सभी संगठनों को उन्नत कर लेते। और हमारी एजेंसियों को बड़े पैमाने पर एफडीआई प्रवाह की वजह से बढ़ती जांच और वित्तीय धोखाधड़ी के साथ सामना करने में मुश्किल नहीं आई होती।
भारत सरकार की इस लापरवाही और निरीक्षण ने हमें एक अनिश्चित स्थिति में छोड़ दिया है। अब भारत की संवेदनशील जांच विदेशी जासूस द्वारा स्थापित निजी जांच फर्मों के लिए उप-अनुबंधित हो रही है। क्या यह मूर्खता नहीं है?
Investigative agencies CBI RBI ED SFIO & SEBI are subcontracting sensitive investigations to foreign spy firms https://t.co/8tLuwxMV01
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) October 25, 2017
यहां तक कि “एजेंसी-टू-एजेंसी” समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं जो FBI को संबंधित राज्य सरकार की अनुमति के बिना भी भारत में आतंकवाद से संबंधित मामलों की जांच करने की अनुमति देता है! यह पिछले साल हमारी जांच में सामने आया था। क्या अब आपको नया सामान्य दिखाई दे रहा है?
There are even “agency-to-agency” agreements signed which allows FBI to probe terrorism-related cases in India without even taking concerned state government’s permission! This was revealed in our investigation last year. Now do you see the #NewNormal? https://t.co/L6JhuR71XD
— GreatGameIndia (@GreatGameIndia) December 13, 2017
यह “100 साल तक अमेरिका-भारत सामरिक भागीदारी के लिए खाका” की एक झलक है। “सहभाजीत संप्रभुता” – के साथ एक भविष्य जो प्रत्येक प्रोटोकॉल और संस्था को दरकिनार करते हुए / त्यागकर इस तरह के उच्च प्रोफ़ाइल वाले इवेंट्स के माध्यम से बार-बार प्रतीकात्मक रूप से सामान्य हो रहा है|